लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
अध्याय 50
कुँवर विनयसिंह की वीर
मृत्यु के पश्चात
रानी जाह्नवी का
सदुत्साह दुगुना हो गया।
वह पहले से
कहीं ज्यादा क्रियाशील
हो गईं। उनके
रोम-रोम में
असाधारण स्फूर्ति का विकास
हुआ। वृध्दावस्था की
आलस्यप्रियता यौवन-काल
की कर्मण्यता में
परिणत हो गई।
कमर बाँधी और
सेवक-दल का
संचालन अपने हाथ
में लिया। रनिवास
छोड़ दिया, कर्म-क्षेत्रा में उतर
आईं और इतने
जोश से काम
करने लगीं कि
सेवक-दल को
जो उन्नति कभी
न प्राप्त हुई
थी, वह अब
हुई। दान का
इतना बाहुल्य कभी
न था, और
न सेवकों की
संख्या ही इतनी
अधिक थी। उनकी
सेवा का क्षेत्रा
भी इतना विस्तीर्ण
न था। उनके
पास निज का
जितना धन था,
वह सेवक-दल
को अर्पित कर
दिया, यहाँ तक
कि अपने लिए
एक आभूषण भी
न रखा। तपस्विनी
का वेश धारण
करके दिखा दिया
कि अवसर पड़ने
पर स्त्रियाँ कितनी
कर्मशील हो सकती
हैं।
डॉक्टर गांगुली का आशावाद
भी अंत में
अपने नग्न रूप
में दिखाई दिया।
उन्हें विदित हुआ कि
वर्तमान अवस्था में आशावाद
आत्मवंचना के सिवार
और कुछ नहीं
है। उन्होंने कौंसिल
में मि. क्लार्क
के विरुध्द बड़ा
शोर मचाया, पर
यह अरण्य-रोदन
सिध्द हुआ। महीनों
का वाद-विवाद,
प्रश्नों का निरंतर
प्रवाह, सब व्यर्थ
हुआ। वह गवर्नमेंट
को मि. क्लार्क
का तिरस्कार करने
पर मजबूर न
कर सके। इसके
प्रतिकूल मि. क्लार्क
की पद-वृध्दि
हो गई। इस
पर डॉक्टर साहब
इतने झल्लाए कि
आपे में न
रह सके। वहीं
भरी सभा में
गवर्नर को खूब
खरी-खरी सुनाईं,यहाँ तक
कि सभा के
प्रधान ने उनसे
बैठ जाने को
कहा। इस पर
वह और अधिक
गर्म हुए और
प्रधन की भी
खबर ली। उन
पर पक्षपात का
दोषारोपण किया। प्रधन ने
तब उनको सभा-भवन से
चले जाने का
हुक्म दिया और
पुलिस को बुलाने
की धामकी दी।
मगर डॉक्टर साहब
का क्रोध इस
पर भी शांत
न हुआ। वह
उत्तोजित होकर बोले-आप पशु-बल से
मुझे चुप कराना
चाहते हैं, इसलिए
कि आपमें धर्म
और न्याय का
बल नहीं है।
आज मेरे दिल
से यह विश्वास
उठ गया, जो
गत चालीस वर्षों
से जमा हुआ
था कि गवर्नमेंट
हमारे ऊपर न्यायबल
से शासन करना
चाहती है। आज
उस न्याय-बल
की कलई खुल
गई, हमारी ऑंखों
से पर्दा उठ
गया और हम
गवर्नमेंट को उसके
नग्न, आवरणहीन रूप
में देख रहे
हैं। अब हमें
स्पष्ट दिखाई दे रहा
है कि केवल
हमको पीसकर तेल
निकालने के लिए,
हमारा अस्तित्व मिटाने
के लिए, हमारी
सभ्यता और हमारे
मनुष्यत्व की हत्या
करने के लिए
हमको अनंत काल
तक चक्की का
बैल बनाए रखने
के लिए हमारे
ऊपर राज्य किया
जा रहा है।
अब तक जो
कोई मुझसे ऐसी
बातें कहता था,
मैं उससे लड़ने
पर तत्पर हो
जाता था, मैं
रिपन, ह्यूम और
बेसेंट आदि की
कीर्ति का उल्लेख
करके उसे निरुत्तर
करने की चेष्टा
करता था। पर
अब विदित हो
गया कि उद्देश्य
सबका एक ही
है, केवल साधनों
में अंतर है।
वह और न
बोलने पाए। पुलिस
का एक सार्जेंट
उन्हें सभा-भवन
से निकाल ले
गया। अन्य सभासद
भी उठकर सभा-भवन से
चले गए। पहले
तो लोगों को
भय था कि
गवर्नमेंट डॉक्टर गांगुली पर
अभियोग चलाएगी, पर कदाचित्
व्यवस्थाकारों को उनकी
वृध्दावस्था पर दया
आ गई, विशेष
इसलिए कि डॉक्टर
महोदय ने उसी
दिन घर आते
ही अपना त्याग-पत्र भेज
दिया। वह उसी
दिन वहाँ से
रवाना हो गए
और तीसरे दिन
कुँवर भरतसिंह से
आ मिले। कुँवर
साहब ने कहा-तुम तो
इतने गुस्सेवर न
थे, यह तुम्हें
क्या हो गया?
गांगुली-हो क्या
गया! वही हो
गया, जो आज
से चालीस वर्ष
पहले होना चाहिए
था। अब हम
भी आपका साथी
हो गया। अब
हम दोनों सेवक-दल का
काम खूब उत्साह
से करेगा।
कुँवर-नहीं डॉक्टर
साहब, मुझे खेद
है कि मैं
आपका साथ न
दे सकूँगा। मुझमें
वह उत्साह नहीं
रहा। विनय के
साथ सब चला
गया। जाह्नवी अलबत्ता
आपकी सहायता करेंगी।
अगर अब तक
कुछ संदेह था,
तो आपके निर्वासन
ने उसे दूर
कर दिया कि
अधिाकारी-वर्ग सेवक-दल से
सशंक है और
यदि मैं उससे
अलग न रहा
तो मुझे अपनी
जाएदाद से हाथ
धोना पड़ेगा। अब
यह निश्चय है
कि हमारे भाग्य
में दासता ही
लिखी हुई है...
गांगुली-यह आपको
कैसे निश्चय हुआ?
कुँवर-परिस्थितियों को देखकर,
और क्या। जब
यह निश्चय है
कि हम सदैव
गुलाम ही रहेंगे,
तो मैं आपकी
जाएदाद क्यों हाथ से
खोऊँ?जाएदाद बची
रहेगी, तो हम
इस दीनावस्था में
भी अपने दुखी
भाइयों के कुछ
काम आ सकेंगे।
अगर वह भी
निकल गई, तो
हमारे दोनों हाथ
कट जाएँगे। हम
रोनेवालों के ऑंसू
भी न पोंछ
सकेंगे।
गांगुली-आह! तो
कुँवर विनयसिंह का
मृत्यु भी आपके
इस बेड़ी को
नहीं तोड़ सका।
हम समझा था,
आप निर्द्वंद्व हो
गया होगा। पर
देखता है, तो
यह बेड़ी ज्यों-का-त्यों
आपके पैरों में
पड़ा हुआ है।
अब आपको विदित
हुआ होगा कि
हम क्यों सम्पत्तिाशाली
पुरुषों पर भरोसा
नहीं करता। वे
तो अपनी सम्पत्तिा
का गुलाम हैं।
वे कभी सत्य
के समर में
नहीं आ सकते।
जो सिपाही सोने
की ईंट गर्दन
मे बाँधाकर लड़ने
चले,वह कभी
नहीं लड़ सकते।
उसको तो अपने
ईंट की चिंता
लगा रहेगा। जब
तक हम लोग
ममता का परित्याग
नहीं करेगा, हमारा
उद्देश्य कभी पूरा
नहीं होगा। अभी
हमको कुछ भ्रम
था, पर वह
भी मिट गया
कि सम्पत्तिाशाली मनुष्य
हमारा मदद करने
के बदले उलटा
हमको नुकसान पहुँचाएगा।
पहले आप निराशावादी
था, अब आप
सम्पत्तिवादी हो गया।
यह कहकर डॉक्टर
गांगुली विमन हो
यहाँ से उठे
और जाह्नवी के
पास आए, तो
देखा कि वह
कहीं जाने को
तैयार बैठी हैं।
इन्हें देखते ही विहसित
मुख से इनका
अभिवादन करती हुई
बोली-अब तो
आप भी मेरे
सहकारी हो गए।
मैं जानती थी
कि एक-न-एक दिन
हम लोग आपको
अवश्य खींच लेंगे।
जिनमें आत्मसम्मान का भाव
जीवित है, उनके
लिए वहाँ स्थान
नहीं है। वहाँ
उन्हीं के लिए
स्थान है, जो
या तो स्वार्थ-भक्त हैं
अथवा अपने को
धाोखा देने में
निपुण। अभी यहाँ
दो-एक दिन
विश्राम कीजिएगा। मैं तो
आज की गाड़ी
से पंजाब जा
रही हूँ।